चलो इक बार फिर से अजनबी बन जाएं हम दोनों
न मैं तुम से कोइ उम्मीद रखूँ दिल-नवज़ी की
न तुम मेरी तरफ देखो ग़लत-अंदाज नजरों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाए मेरी बातों में
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों में
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेश्कद्मी से
मुझे भी लोग कहते हैं, की यह जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई रातों के साए हैं